🌸 श्री राधा अष्टमी – भाग 1: जन्म और प्रारंभिक लीलाएँ
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी, जब सूरज की सुनहरी किरणें ब्रजभूमि को आलोकित कर रही थीं, उसी पावन क्षण में श्री राधा रानी का प्राकट्य हुआ। यह दिन केवल जन्मोत्सव नहीं, बल्कि the appearance of love itself है। जन्माष्टमी के पंद्रह दिन बाद आने वाली यह तिथि प्रेम, भक्ति और दिव्यता का संदेश लिए ब्रज में आई।
स्थान और वातावरण
स्थान था रावळ ग्राम, आज के बरसाना। यहाँ के हरे-भरे कुंज, पवन सरोवर की लहरें, और ग्वाल-बालों की हँसी—सभी प्रतीत हो रहे थे जैसे किसी अद्भुत उत्सव की प्रतीक्षा कर रहे हों।
गाँव के प्रत्येक घर, मार्ग और तालाब पर दिव्य ऊर्जा व्याप्त थी। पक्षियों की चहचहाहट, कमल के फूलों की खुशबू और दूर से आ रही बाँसुरी की ध्वनि—यह सब मिलकर राधा रानी के आगमन की प्रतीक्षा में ब्रज को मंत्रमुग्ध कर रहा था।
वृषभानु महाराज और माता कीर्तिदा की तपस्या
वृषभानु महाराज और माता कीर्तिदा वर्षों से संतान-प्राप्ति हेतु गहन तपस्या कर रहे थे। उनके हृदय में केवल एक ही इच्छा थी—to witness the divine embodiment of love।
एक प्रातःकाल, महाराज सरोवर के तट पर स्नान करने गए। अचानक उन्होंने देखा—कमल पर एक अलौकिक बालिका प्रकट हुई। उसके अंग-प्रत्यंग से दिव्य आभा फूट रही थी, किन्तु नेत्र बंद थे। महाराज ने प्रेमपूर्वक उसे उठाकर घर लाया। माता कीर्तिदा ने उसे उर में भरते ही आशीर्वाद दिया और उसकी ओर से सभी ब्रजवासी आभासित हुए कि यह कोई साधारण बालिका नहीं, बल्कि embodiment of divine bliss है।
नयन-प्रकट लीला
समाचार नंदग्राम पहुँचा। नंद बाबा और यशोदा मैया, श्यामसुंदर कृष्ण को गोद में लेकर, वृषभानु के घर आए। जब नन्हे कृष्ण ने अपनी कोमल उँगली उस बालिका के कपोलों पर फिराई, तभी राधा रानी ने पहली बार अपनी आँखें खोलीं।
क्षण भर में राधा और कृष्ण की दृष्टि मिल गई। यह कोई साधारण दृश्य नहीं था—जैसे दो आत्माएँ अपने मूल स्वरूप में एक-दूसरे को पहचान रही हों। आकाश से पुष्प वर्षा हुई, और पूरा ब्रज rejoiced in divine union।
गायन और बाँसुरी की प्रस्तुति
तत्काल, नंदग्राम के चारों ओर गायों और ग्वाल-बालों की संगत में मधुर बाँसुरी की ध्वनि गूँज उठी। सभी ब्रजवासी नृत्य करने लगे और प्रेम की इस दिव्य अनुभूति को हृदय में संजो लिया।
बाल्यकाल की झलकियाँ
जन्म के तुरंत बाद ही राधा रानी ने अपने बाल्यकाल की लीलाओं की आभा प्रकट करनी शुरू कर दी। उनके हर हाव-भाव में दिव्यता और प्रेम का संकेत था। ब्रज के कुंजों में खेलतीं, सखियों के साथ हँसतीं, और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेतीं—ये सभी दृश्य शास्त्रों में वर्णित राधा रानी की प्रारंभिक लीलाओं के साक्ष्य हैं।
शास्त्रीय प्रमाण
तया विना न कृष्णोऽस्ति तया विना न तद्गतिः ॥
इस प्रकार शास्त्र स्पष्ट करते हैं कि राधा केवल एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व नहीं, बल्कि the eternal power of devotion हैं।
अगले भाग में हम राधा रानी की और अधिक बाल्यकाल की लीलाओं, सखियों के साथ उनके अनुभव और ब्रज की विविधता में उनकी दिव्यता का वर्णन करेंगे।