🌸 श्री राधा अष्टमी – भाग 2: बाल्यकाल और ब्रज की दिव्य लीलाएँ
राधा रानी का बाल्यकाल केवल साधारण बाल्यकाल नहीं था; यह प्रेम, भक्ति और दिव्यता का संगम था। उनके हर हाव-भाव में प्रेम की गूँज, हर मुस्कान में आनंद का झरना। वे न केवल अपनी सखियों के साथ खेलतीं, बल्कि ब्रज की प्रत्येक जीवित और निर्जीव वस्तु उनके प्रेम और दिव्यता की उपासना बन जाती थी। सूरज की पहली किरण उनके बालों पर पड़ते ही जैसे स्वर्णिम प्रभा फैला देती, और वृंदावन के कुंज उनके साथ खिल उठते।
सखियों का उनका प्रेम अत्यंत कोमल और स्वाभाविक था। लक्ष्मी, मघा, चंद्रिका और अन्य सखियाँ उनके जीवन का हिस्सा थीं। राधा रानी और उनकी सखियाँ मिलकर फूलों की माला बनातीं, झूलों पर झूलतीं और अपने छोटे-छोटे गीतों में प्रेम का भाव व्यक्त करतीं। उनके खेल में केवल बालपन का आनंद नहीं, बल्कि आत्मीयता, सहयोग और प्रेम की शिक्षा छिपी हुई थी।
वनों और कुंजों की हरित छाया उनके आनंद को और भी गहन बनाती। सरसों के पीले खेत, कमल से भरे सरोवर, पवित्र वृक्ष और पर्वतों की हरी छाया—सब कुछ उनके साथ एक दिव्य संगम बनाता। पक्षी उनके चारों ओर मंडराते, झरने और सरोवर उनके कदमों की ध्वनि में प्रतिध्वनित होते। राधा रानी की हर मुस्कान, हर हंसी और हर क्रिया इस ब्रजभूमि को उनके प्रेम से प्रकाशित कर देती।
बाल्यकाल में ही राधा और कृष्ण की आंखों में एक अज्ञात और गहन आकर्षण दिखाई देता। कृष्ण जब उनके पास आते, तो उनके हृदय में एक अद्भुत सौम्यता और आनंद भर जाता। कभी-कभी वे चुपचाप उनकी लीलाओं को देखतीं, कभी-कभी उनके साथ छुप-छुप कर खेलतीं। यह केवल बाल्यकाल का खेल नहीं था, बल्कि the divine expression of eternal love का प्रारंभिक रूप था।
उनकी लीलाएँ केवल खेल या मनोरंजन तक सीमित नहीं थीं। जब वे सरोवर के किनारे जातीं, तो पानी की लहरें उनके कदमों के साथ खेलतीं। कमल उनके चरणों में खिलते और पवन उनके बालों को सहलाती। यह सब देखने वाले ब्रजवासियों को प्रतीत होता जैसे धरती पर स्वर्ग उतर आया हो। माता कीर्तिदा और वृषभानु महाराज स्वयं उनकी बाल्य लीला को देखकर हर्षित होते।
सखियों के साथ उनकी बातचीत, गीत और नृत्य, हर चीज़ में दिव्यता की झलक होती। वे अपने मित्रों के साथ वन में झूले झूलतीं, सरोवर में पानी में खेलतीं, फूलों से मुकुट सजातीं और अपनी मुस्कान से चारों ओर आनंद की लहरें भेजतीं। राधा रानी की हर हरकत में प्रेम, भक्ति और सौम्यता का संदेश छिपा होता।
कृष्णसंज्ञां दृष्ट्वा हृदयमवर्तते ततः॥
राधा रानी के बाल्यकाल की लीलाओं में ब्रजवासियों की दृष्टि में भी अद्भुत आनंद छिपा हुआ था। जब वे खेलतीं, तो ग्वाल-बाल और गाँव के अन्य बच्चे भी उनके आसपास जमा हो जाते। उनकी सरलता, सौम्यता और कोमलता देखकर हर कोई उनके प्रेम और दिव्यता का अनुभव करता।
कृष्ण के साथ उनका प्रारंभिक संबंध बाल्यकाल में ही पूर्ण रूप से दिखाई देता। उनके दृष्टि मिलन, खेल के क्षण और हंसी-मजाक—सभी में प्रेम की गहन अनुभूति होती। यह केवल मानवीय बाल्य प्रेम नहीं, बल्कि divine love in its purest form का अनुभव था। जब कृष्ण उनके पास खेलते, तो राधा रानी की आँखों में दिव्यता और आनंद की झलक दिखती।
ब्रजवासियों की नज़र में राधा रानी केवल एक बालिका नहीं, बल्कि ब्रज की जीवनदायिनी शक्ति थीं। उनकी उपस्थिति में हर कोई आनंदित होता। उनका हर कदम, हर हँसी और हर खेल ब्रजवासियों के हृदय में प्रेम और भक्ति की लहरें छोड़ देता।
राधा रानी की बाल्य लीला में प्रकृति और जीवों की भागीदारी भी अद्भुत थी। पक्षी उनके चारों ओर मंडराते, गाये झरने उनके कदमों के साथ संगीत बनाते। फूल उनके चारों ओर खिलते और पेड़ उनके खेल में सहायक बन जाते। यह सब राधा रानी की दिव्यता और प्रेम की शक्ति का प्रतीक था।
उनकी सखियों के साथ के हर संवाद में प्रेम और सौम्यता की झलक मिलती। उनके गीत और नृत्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि divine expressions of bliss and devotion थे। बाल्यकाल में ही उनके हृदय में प्रेम और भक्ति का गहन बीज रोपा गया था, जो जीवनभर विकसित होता रहा।
राधा रानी का बाल्यकाल हमें यह भी सिखाता है कि भले ही कोई व्यक्तित्व सामान्य जीवन में दिखाई दे, पर उसकी प्रत्येक क्रिया, हर शब्द और हर भाव में दिव्यता छिपी हो सकती है। राधा रानी का जीवन इस दिव्यता का प्रत्यक्ष प्रमाण है। उनके बाल्यकाल की लीलाएँ, उनके हाव-भाव, उनके खेल और उनके दृष्टि मिलन—सब कुछ हमें सिखाते हैं कि प्रेम और भक्ति की शक्ति सदा जीवित रहती है।
इस भाग में हमने राधा रानी के बाल्यकाल, उनके सखियों के साथ खेल, ब्रज की प्रकृति और कृष्ण के साथ प्रारंभिक प्रेम की गहन झलक देखी। उनके बाल्यकाल की हर लीला में प्रेम, भक्ति और सौम्यता का अद्भुत संगम था। अगले भाग में हम उनकी किशोरावस्था की लीलाओं, प्रेम की गहन अनुभूति और ब्रज के विभिन्न त्यौहारों में उनके योगदान का वर्णन करेंगे।